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safar lekhni ka

व्यपार में असफलता दूर करने का उपाय

यह उपाय उन परेशान व्यवसायियों के लिए है जो अपने व्यवसाय में लगातार घाटे और वित्तीय असफलताओं का सामना कर रहे हैं  ये प्रयोग लगातार 5 बुधवार को 5 बार करना है । अब मैं आप को बताती हूं ये प्रयोग कैसे करना है  1पीले रंग की कौड़ी 2लौंग  2हरी इलायची 1 चुटकी मिट्टी उस जगह की जहां व्यवसाय है या जो रूम है उसका एक चुटकी प्लास्टर प्रयाप्त है  1सिक्का तांबे का  बताई गई पहली चार वस्तुओं को जलाएं और एक राख को पान के पत्ते में लपेट कर बीड़ा बनाएं छेद की हुआ तांबे का सिक्का लें और पान के साथ बहते हुए जल में प्रवाहित करें और एक 9साल से कम उम्र की कन्या को भोजन कराएं । इस तरह यह साधना 5 बुधवार करनी है Reiki grand master spiritual healer & numerologist Manissha Gupta

अंतर्मुखी

पीहू हां प्यार से सब पीहू ही बुलाते थे पायल को सौम्य , सजल , मध्यम सी आंखे कद काठी सामान्य चेहरा साधारण पर एक आकर्षण लिए हुए जो पीहू की तरफ बरबस किसी को भी आकर्षित करता था यूं तो घर की लाडली बेटी थी पीहू पर जैसे जिद उसकी फितरत ही नही थी सहर्ष है स्वीकार लेती थी सभी बातों को , छोटा सा घर का आंगन उस पर बीचों बीच अमरूद का पेड़ तीन कमरों की उसकी दुनिया , दादा दादी की लड़ैती कब पीहू ने इतराते गुनगुनाते मुस्कराते 14 बसंत पार किए पता ही ना चला बस कभी कभी मां को ही कहते सुना  लाडो बड़ी हो रही है कभी इं किताबो से बाहर निकल चूल्हा चौका भी झांक लिया कर कल दूसरे घर जाएगी क्या कहेंगे मां ने कुछ ना सिखाया , तो दादी बोल पड़ती अरे बहू तू सारी जिंदगी औरत को करना ही क्या होवे है कलेक्टर बन कर भी बच्चे पैदा करना घर गृहस्थी की जिम्मेदारी निभाना , जब पड़ेगी सीख लेनी अभी यहां तो मर्ज़ी से जीने दे छोरी को , और बस पीहू मनुहार से चिपक जाती दादी से , पीहू यूं तो खूब बोलती बतियाती पर कहीं न कहीं बहुत अंतर्मुखी थी कभी अपने मन की बात ना कहती कुछ पूछो तो एक सा जवाब जो आप कहो जैसा आप कहो , 12 की परीक्षा की तैयारी कर

एडिटिंग

यह एडिटिंग भी क्या कमाल करती है  बदसूरती के सारे आयाम छुपा कर खूबसूरती में बदलती है । जो रूबरू हैं मुझ से वो  मेरी इस तस्वीर से अंदाज़ लगा लेंगे  कितनी बारीकी से बदला है मुझे  देखिए हामी में से हिला देंगे । पर सोचिए जब तस्वीर को बदल ये एडिटिंग पूरा स्वरूप बदल सकती है तो जिंदगी के वो हर पहलू जो बदल सकते हैं थोड़ी सी एडिटिंग क्यों न उन पर कर जिंदगी को खूबसूरत बना डाले 😃😃 दोस्तों बात इतनी सी क्यों ना इस जिंदगी को भी रंगीन बना डालें 😋 क्युकी ये जिंदगी न मिलेगी दोबारा ❤️ मुझे भी ये एडिटिंग अब समझ आई है इसलिए ✍️✍️✍️✍️✍️  MAnNisha misha

पूर्ण विराम

विराम से पूर्ण विराम  # यह शब्द लगता है न जैसे सब कुछ रुक सा गया हो ।                    😱पर जरा सोचो 😱 यह विराम न होता तो सब कुछ एक प्रवाह में बहता जाता और कोई अंत ही न होता और जब अंत ही न होता तो सर्जन कैसे संभव था एक विराम प्रवाह देता है बदलाव को ।           * जैसे *  एक बीज जब धरती के गर्भ में जाता है और वो धीरे धीरे बढ़ कर धरती से बाहर निकल बढ़ता है और एक पेड़ का रूप लेता है यह रूप पा कर उस का विराम होता है और शुरू होती है आगे बढ़ने की प्रक्रिया और उस पेड़ पर फूल आते है जो एक फल का रूप लेते हैं फल के रूप में उस पेड़ के अस्तित्व का पूर्णविराम हो जाता है और यही विराम उसकी सजीवता को दर्शाता है कि एक बीज से फल तक का उसका सफर कितने विरामो से निकल पूर्ण विराम तक पहुंचा ।                         * मनुष्य जीवन *  ठीक उसी प्रकार हमारे जीवन का सफर जन्म से लेकर मृत्यु तक न जाने कितने विरामो से गुजरता हुआ एक पूर्ण विराम पर आ कर रुक जाता है ।                       ----- यक़ीनन ------ विराम से पूर्ण विराम  इस से हमारा कितना  गहरा नाता है ......... खुद के अस्तित्व को बनाने के लिए  यह पल पल  हमारा रूप

कशिश

न जाने कौन सी कशिश है जो मै हैरान सी हूं । दिल नहीं लगता कहीं मेरा मैं परेशान से हूं । की आ दो घड़ी मेरे पास आ  या तो मुझे इस कश्मकश से बाहर निकाल या मेरे संग इसमें डूब जा  मैं अपराजिता

मां

शब्द ढूंढ़ती थी  अक्सर मां के लिए  और रुक जाती थी  मेरी कलम कभी भी मां से विस्तृत नहीं हो पाती थी ....। कैसे संवरती थी  कैसे निखरती थी कैसे मां मेरी हर  रूप में ढलती थी ..। रिश्तों को सारे  सहजता से समेटती थी  सौम्यता उसकी हर एक को अपनी और खींचती थी ..। मजबूती की जैसे  वो एक मिसाल थी  हम बच्चों की मां हमारे लिए एक ठोस दीवार थी .......। बातों से अपनी कुछ ऐसे रिझाती थी  मुस्कान उनकी बहुत मासूम हो जाती थी ..। यूं तो संस्कारो की  वो एक पहचान थी  क्या कहूं मां के लिए शब्दों की कड़ियां  जुड़ती चली जाती हैं । मां 😘

मृत्यु अटल सत्य

जन्म मृत्यु शैय्या से पंचतत्व में विलीन हो अपने होने को सार्थक करता है , पर कितना विचित्र होता है ये सफ़र एक अस्तित्व को जन्म देने के लिए कितना सहेजा जाता है ,  नौ महीने मां की कोख का आवरण उसे हर परेशानी से सुरक्षित रख जन्मता है और आखरी पढ़ाव जिंदगी का उस अग्नि की भीषण लपटों के हवाले कर देता है , और एक अस्तित्व जो रह जाती है एक राख जिसमें होते हैं वो अवशेष जो न जाने कितने संघर्षों से गुजर पाषाण तो बन जाते हैं पर खुद को अग्नि में समर्पित करने से नहीं रोक पाते हैं ।  जिंदगी से मृत्यु तक का ये सफ़र न जाने कितने सुखद और दुखद  पड़ावों से हो कर गुजरता है , और इस कार्यकाल के अवशेष छोड़ जाता है यादों कि धरोहर बन कर ।  ॐ शांति 🙏 मां 

कैसा यह इश्क़ है

ग़ज़ल  यूं तो कई बार खुद को बिखर कर संवरते देखा । पर जो अबकी बिखरे तो फिर ना संभल पाएंगे । रोएंगे अश्क भी अपने बेबस हुए हालातों पर । दर्द में तन्हा हुए और आंखो से निकल जाएंगे । अबकी बार जो बिखरे  फिर ना संभल पाएंगे । दे कर दुहाई इश्क़ की जो रोज छल जाते हैं । जाते जाते दर्द के सैलाब में मुझे डूबा जाते हैं । अबकी जो वो गए तो  लौट कर हमें ना पाएंगे । अबकी बार जो बिखरे  फिर न संभल पाएंगे । मैं अपराजिता